Saturday, 30 December 2017
एक श्राप के कारण इंडोनेशिया के इस मंदिर में विराजित हैं देवी दुर्गा
भगवान शिव के मंदिर दुनियाभर में मौजूद हैं। जहां भगवान शिव के साथ-साथ कई देवी-देवताओं को अलग-अलग नामों से पूजा जाता है। भगवान शिव का ऐसा ही एक बहुत सुंदर और प्राचीन मंदिर इंडोनेशिया के जावा में है। 10वीं शताब्दी में बना भगवान शिव का यह मंदिर प्रम्बानन मंदिर के नाम से जाना जाता है। शहर से लगभग 17 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह मंदिर बहुत सुंदर और प्राचीन होने के साथ-साथ, इससे जुड़ी एक कथा के लिए भी प्रसिद्ध है।
Tuesday, 28 November 2017
Wednesday, 18 October 2017
KRISHNA RADHA :- इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने ली थी अपनी अंतिम सांसे !!
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और महज उससे पांच किमी की दुरी पर स्थित वो पवित्र धाम जो सुनाता है कहानी भगवान श्री कृष्ण के अंतिम दिनों की
आज हम आपको उस पावन स्थान के बारे में बत हे है जहां इस सृष्टि के पालनहार ने त्यागा अपना शरीर. आपको बता दे कि यह स्थान दुनिया भर में भालका तीर्थ के नाम से प्रसिद्द है. ऐसा कहा जाता है यहाँ श्रीकृष्ण को बाण लगा था. इसी जगह पर हरि ने अंतिम सांसे ली थी.
Saturday, 2 September 2017
महामृत्युंजय-मंत्र की रचना कैसे हुई?
शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.
मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.
Thursday, 24 August 2017
गणपती क्यों बिठाते हैं ?
हम सभी हर साल गणपती की स्थापना करते हैं, साधारण भाषा में गणपती को बैठाते हैं।
लेकिन क्यों ???
किसी को मालूम है क्या ??
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है।
लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था।
अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपती जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।
गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था।
अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की।
मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा।
महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला।
अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।
वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया।
इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए।
तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी।
इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।।


Tuesday, 18 July 2017
ऐसी मान्यता है 5 मंगलवार यहाँ दर्शन करने से कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है
उलटे हनुमान मंदिर परिसर में पीपल, नीम, पारिजात, तुलसी, बरगद के पेड़ हैं। यहाँ वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं। पुराणों के अनुसार पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का भी वास रहता है
भारत की धार्मिक नगरी उज्जैन से केवल 30 किमी दूर स्थित सांवेर में उल्टे हनुमानजी का मंदिर हैं ऐसा कहा जाता है कि पूरे भारत में ये ही सिर्फ उल्टे हनुमान का मंदिर हैं। यह मंदिर साँवेर नामक स्थान पर स्थापित है इस मंदिर को कई लोग रामायण काल के समय का बताते हैं। मंदिर में भगवान हनुमान की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति विराजमान है। सांवेर का हनुमान मंदिर हनुमान भक्तों का महत्वपूर्ण स्थान है यहाँ आकर भक्त भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। यह स्थान ऐसे भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया।
भगवान हनुमान के एक विशेष मंदिर तक जो साँवेर नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें हनुमानजी की उलटी मूर्ति स्थापित है। और इसी वजह से यह मंदिर उलटे हनुमान के नाम से मालवा क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
स्थिति ऐतिहासिक धार्मिक नगरी उज्जैन से मात्र 30 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर को यहाँ के निवासी रामायणकालीन बताते हैं। मंदिर में हनुमानजी की उलटे चेहरे वाली सिंदूर लगी मूर्ति है।
कथा
यहाँ के लोग एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जब अहिरावण भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया था, तब हनुमान ने पाताल लोक जाकर अहिरावण का वध कर श्रीराम और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहाँ से हनुमानजी ने पाताल लोक जाने हेतु पृथ्वी में प्रवेश किया था।
साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम] सीता] लक्ष्मणजी] शिव पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। कहते हैं भक्ति में तर्क के बजाय आस्था का महत्व अधिक होता है। यहाँ प्रतिष्ठित मूर्ति अत्यंत चमत्कारी मानी जाती है। यहाँ कई संतों की समाधियाँ हैं। सन् 1200 तक का इतिहास यहाँ मिलता है।
निकटवर्ती
उलटे हनुमान मंदिर परिसर में पीपल, नीम, पारिजात, तुलसी, बरगद के पेड़ हैं। यहाँ वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं। पुराणों के अनुसार पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का भी वास रहता है। मंदिर के आसपास के वृक्षों पर तोतों के कई झुंड हैं। इस बारे में एक दंतकथा भी प्रचलित है। तोता ब्राह्मण का अवतार माना जाता है। हनुमानजी ने भी तुलसीदासजी के लिए तोते का रूप धारण कर उन्हें भी श्रीराम के दर्शन कराए थे।
साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम ,सीता, लक्ष्मणजी, शिव,पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। यही आस्था श्रद्धालुओं को यहाँ तक खींच कर ले आती है।
Address
सड़क मार्ग; उज्जैन & 30 किमी इंदौर ; 30 किमी से यहाँ आने; जाने के लिए बस तथा टैक्सी उपलब्ध है। हवाई मार्ग निकटतम एयरपोर्ट इंदौर 30 किमी दूरी पर स्थित ।
मान्यता है यहां भगवान शिव को झाड़ू भेंट करने से खत्म होता हैं त्वचा रोग
भारत में ऐसा ही एक शिव मंदिर है जहाँ लोग फूल और दूध के साथ-साथ, झाड़ू भी ईश्वर को समर्पित करते हैं।
पातालेश्वर मंदिर, एक छोटे से गाँव सदत्बदी जो मुरादाबाद और आगरा राजमार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है और भगवान शिव यहाँ भक्तों की भेट झाड़ू को भी स्वीकार करते हैं। यहां के लोगो का मानना है कि अगर भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाई जाये तो व्यक्ति के सभी प्रकार के त्वचा के रोग ठीक हो जाते है। सदियों पुराने इस मंदिर में वह लोग अधिक आते है जो त्वचा के रोगों से ग्रस्त है। सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है इस लिए सोमवार को यहाँ भारी भीड़ दर्शन करने आती है।
इस प्राचीन शिव पातालेश्वर मंदिर में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढाते हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं। सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
इस चमत्कार के पीछे एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी एक भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था और वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी।
एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारीदास का दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली स्वीकार करे। किन्तु महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें। कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
आज यहाँ इस तरह के हज़ारों लोग आते हैं जो त्वचा रोग से पीड़ित हैं और आसपास के लोग यह भी बताते हैं कि अधिकतर लोगों को यहाँ आने और झाड़ू चढ़ाने के बाद, इस रोग से मुक्ति भी मिलती है। लेकिन भगवान शिव की महिमा तो वैसे भी अपरम्पार है तो यहाँ लोग त्वचा रोग के अलावा, अपने और सभी दुःख भी लेकर आते हैं।
इस चमत्कारिक शिवलिंग में लाखों लोग सालभर में आते हैं और अपने दुखों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
Tuesday, 11 July 2017
Banke Bihari Temple Story
वृंदावन में बाँकेबिहारी जी मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्रीकृष्ण और राधाजी समाहित हैं , इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा-कृष्ण के दर्शन के फल की प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा के प्रकट होने की कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है, इसलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बाँकेबिहारी मंदिर में बाँकेबिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है।
बाँकेबिहारी जी के प्रकट होने की कथा-संगीत सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वृंदावन में स्थित श्रीकृष्ण की रास-स्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे। भगवान की भक्ति में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी भक्ति और गायन से रीझकर भगवान श्रीकृष्ण इनके सामने आ गये। हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्रीकृष्ण को दुलार करने लगे। एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप अकेले ही श्रीकृष्ण का दर्शन लाभ पाते हैं, हमें भी साँवरे सलोने का दर्शन करवाइये। इसके बाद हरिदास जी श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे। राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे-
भाई री सहज जोरी प्रकट भई,
जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे।
प्रथम है हुती अब हूँ आगे हूँ रहि है न टरि है तैसे।
अंग-अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे।
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।
श्रीकृष्ण और राधाजी ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की। हरिदास जी ने कृष्णजी से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूँ। आपको लंगोट पहना दूँगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहाँ से लाकर दूँगा। भक्त की बात सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए और राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह के रूप में प्रकट हुई। हरिदास जी ने इस विग्रह को ‘बाँकेबिहारी’ नाम दिया। बाँके बिहारी मंदिर में इसी विग्रह के दर्शन होते हैं। बाँके बिहारी के विग्रह में राधा-कृष्ण दोनों ही समाए हुए हैं, जो भी श्रीकृष्ण के इस विग्रह का दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। —
Saturday, 1 July 2017
एक मंदिर ऐसा भी जहां दिन में जन्म लेते हैं कान्हा
वृंदावन। भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी (जन्माष्टमी) पर भगवान श्रीकृष्ण रात बारह बजे जन्म लेते हैं। मगर, वृंदावन में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां कन्हैया का जन्म दिन में होता है।
वृंदावन। भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी (जन्माष्टमी) पर भगवान श्रीकृष्ण रात बारह बजे जन्म लेते हैं। मगर, वृंदावन में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां कन्हैया का जन्म दिन में होता है। यह परंपरा लगभग 400 साल पुरानी है। इसके साक्षी होते हैं जन्म दर्शन को देशभर से आने वाले हजारों श्रद्धालु।
प्रसिद्ध राधारमण मंदिर में राधारमण लाल जू की प्रतिमा का जन्म बुधवार को दिन में कराया जाएगा। प्राचीन राधारमण मंदिर की इस परंपरा के पीछे एक कहानी बताई जाती है। चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों में प्रमुख रहे गोपाल भट्ट गोस्वामी सालिग्राम की पूजा में रत रहते। गोपाल भट्ट की सेवा से प्रसन्न होकर एक रात ठाकुरजी ने उन्हें स्वप्न दिया और उनकी इच्छा जानी। गोपाल भट्ट ने भगवान से सालिग्राम रूप में साक्षात छवि देखने की इच्छा जताई। गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत भगवान ने सालिग्राम की शिला को मूर्तरूप दे दिया। नृसिंह चौदस के दूसरे दिन अमावस को जब गोपाल भट्ट गोस्वामी नींद से जागे, तो उनके सामने सालिग्राम की शिला प्रतिमा के रूप में परिवर्तित दिखी। भगवान की इस भेंट से प्रफुल्लित गोपाल भट्ट गोस्वामी ने ठाकुरजी का नाम राधारमण लाल रख दिया।
चैतन्य महाप्रभु के शिष्य होने के नाते श्री मन्माध्वगौड़ेश्वर संप्रदाय के परिजनों पर राधारमण लाल जू की सेवा-सुश्रूषा की जिम्मेदारी तय हुई। लगभग 400 साल बीत जाने के बाद आज भी मंदिर में उस समय तय हुई सेवा-पूजा की विधि में कोई बदलाव नहीं हुआ है। ब्रजमंडल में एक यही ऐसा मंदिर है, जहां भगवान का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। 12100 किलो दूध, दही व जड़ी-बूटियों से होगा महाभिषेक मंदिर सेवायत श्रीवत्स गोस्वामी, पद्नाभ गोस्वामी, पद्मलोचन गोस्वामी, अनुभूति कृष्ण गोस्वामी, पंकज गोस्वामी एवं सेवाधिकारी राधाकांत गोस्वामी, चंद्रकांत गोस्वामी हैं।
उन्होंने बताया कि प्राचीन परंपरा के अनुसार, इस वर्ष भी 28 अगस्त को श्री राधारमण देव का श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर 2100 किलो दूध, दही, घृत, शहद, शक्कर, पंचगव्य, सवरेषधि, गंधाष्टक, बीजाष्टक सहित 54 औषधियों द्वारा महाभिषेक किया जाएगा। इसके बाद भक्तों को पंचामृत प्रसाद वितरण भी किया जाएगा।
द्वापर युग के 7 स्थान जहां भगवान श्रीकृष्ण ने बिताए थे खास पल
अब मशहूर धर्मिक स्थल हैं। हम आप को आज उन सात स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि

यह है मथुरा स्थित भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली। यहीं कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। अब यहां कारागार तो नहीं है लेकिन अंदर का नजारा इस तरह बनाया गया है कि आपको लगेगा कि हां यहीं पैदा हुए थे श्री कृष्ण। यहां एक हॉल में ऊंचा चबूतरा बना हुआ है। यह चबूतरा उसी स्थान पर है जहां श्री कृष्ण ने धरती पर पहला कदम रखा था। श्रद्धालु इसी चबूतरे से सिर टिकाकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नंदराय मंदिर

यह है नंद गांव स्थित नंदराय का मंदिर। कंस के भय से वसुदेव जी यहीं नंदराय और माता यशोदा के पास श्री कृष्ण को छोड़ गए थे। यहां नंदराय जी का निवास था और श्री कृष्णका बालपन गुजरा था। आज यहां भव्य मंदिर है। यहीं पास में एक सरोवर है। जिसे पावन सरोवर कहते हैं। माना जाता है कि इसी सरोवर में माता यशोदा श्री कृष्ण को स्नान कराया करती थीं।
भद्रकाली मंदिर

हरियाण के कुरुक्षेत्र में स्थित भद्रकाली मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह एक शक्तिपीठ है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन हुआ था। यहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण के पद्चिन्ह मौजूद हैं। यहां श्रीकृष्ण के उन्हीं पद्चिन्हों और गाय के पांच खुरों के प्राकृतिक चिन्हों की पूजा की जाती है।
द्वारकाधीश मंदिर
ज्योतिसर तीर्थ

कुरुक्षेत्र में जहां श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। आज वह स्थान ज्योतिसर और गीता उपदेश स्थल के नाम से जाना जाता है। यहीं पर पीपल के वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण ने अमर गीता का ज्ञान दिया था। यहां आज भी वह पीपल का वह पेड़ मौजूद है। जिसके नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

यह है मथुरा स्थित भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली। यहीं कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। अब यहां कारागार तो नहीं है लेकिन अंदर का नजारा इस तरह बनाया गया है कि आपको लगेगा कि हां यहीं पैदा हुए थे श्री कृष्ण। यहां एक हॉल में ऊंचा चबूतरा बना हुआ है। यह चबूतरा उसी स्थान पर है जहां श्री कृष्ण ने धरती पर पहला कदम रखा था। श्रद्धालु इसी चबूतरे से सिर टिकाकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नंदराय मंदिर

यह है नंद गांव स्थित नंदराय का मंदिर। कंस के भय से वसुदेव जी यहीं नंदराय और माता यशोदा के पास श्री कृष्ण को छोड़ गए थे। यहां नंदराय जी का निवास था और श्री कृष्णका बालपन गुजरा था। आज यहां भव्य मंदिर है। यहीं पास में एक सरोवर है। जिसे पावन सरोवर कहते हैं। माना जाता है कि इसी सरोवर में माता यशोदा श्री कृष्ण को स्नान कराया करती थीं।

हरियाण के कुरुक्षेत्र में स्थित भद्रकाली मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह एक शक्तिपीठ है। यहां पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन हुआ था। यहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण के पद्चिन्ह मौजूद हैं। यहां श्रीकृष्ण के उन्हीं पद्चिन्हों और गाय के पांच खुरों के प्राकृतिक चिन्हों की पूजा की जाती है।
द्वारकाधीश मंदिर

कुरुक्षेत्र में जहां श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। आज वह स्थान ज्योतिसर और गीता उपदेश स्थल के नाम से जाना जाता है। यहीं पर पीपल के वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण ने अमर गीता का ज्ञान दिया था। यहां आज भी वह पीपल का वह पेड़ मौजूद है। जिसके नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
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