Maa Tara Chandi Temple Sasaram बिहार राज्य के रोहतास जिले सासाराम में कैमूर पहाड़ी के गुफा में स्थित माँ ताराचण्डी देवी का मंदिर (Maa Tara Chandi Temple Sasaram) चंदन शहीद पहाड़ियों से लगभग 1 किमी दूर स्थित हैं। यहाँ चंडी देवी मंदिर के पास, एक चट्टान पर प्रताप धवल का एक शिलालेख भी है। हिंदू पूजा करने के लिए यहाँ बड़ी संख्या में आते हैं इसलिए यह एक सुंदर धार्मिक स्थल बन गया है।
माँ ताराचण्डी मंदिर (Maa Tara Chandi Temple) के चारों तरफ पहा़ड, झरने और जल स्त्रोतों के बीच स्थित ताराचंडी मंदिर का मनोरम वातावरण मन मोह लेता है. यह भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. अपनी मनोकामनाओं के पूरी होने की लालसा में दूर-दूर से यहां भक्त आते हैं.
नवरात्र में दूर-दराज से यहाँ भक्तो का आना होता हैं. कहा जाता है कि यहा आने वालो की हर मनोकामना माता रानी पूरी करती है. इसलिए लोग इसे मनोकामना सिद्धी देवी भी कहते हैं. माँ ताराचण्डी (Maa Tara Chandi Temple Sasaram) सासाराम नगर से 5 किलोमीटर दक्षिण में स्थित इस मंदिर के प्रति यहाँ के लोगो बहुत श्रद्धा और विश्वास हैं.
माँ ताराचण्डी मंदिर और कथा
माँ ताराचंडी विन्ध्य पर्वत के कैमूर पर्वत श्रृंखला में स्थित है. भारत के अन्य पीठों में इसका स्थान प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में है. इस शक्तिपीठ के बारे में कहा गया है की किंवदंती सती के तीन नेत्रों में से श्री विष्णु के चक्र से खंडित होकर दायां नेत्र यहीं पर गिरा था, जिसे तारा शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था. दरअसल, यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी. मां ताराचंडी (Maa Tara Chandi) इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं.
सासाराम का इतिहास और इसका नाम सासाराम क्यों पड़ा
बिहार राज्य के यह मंदिर रोहतास जिले के सासाराम शहर में है. सासाराम पहले करूश प्रदेश के नाम से जाना जाता था. यहां का राजा कार्तवीर्यपुत्र सहस्त्रबाहु था. करूश प्रदेश का क्षेत्र कर्मनाशा नदी से लेकर सोनभद्र नदी के बीच का विशाल भूखंड है. यह क्षेत्र मनोरम पर्वत श्रृंखलाओं, नदियों और तराइयों से हरा-भरा है. इस मंदिर की एक खास विशेषता है इसका धार्मिक सद्भाव का संदेश. दरअसल, इस मंदिर से सटा एक मस्जिद है, जहां मुसलमान नमाज अदा करते हैं. हिंदू-मुस्लिम भक्तों के साथ पूजा-अर्चना करने के कारण यहां का धार्मिक सद्भाव देखते ही बनता है. इसके अलावा, गुरु तेगबहादुर से जु़डे होने के कारण भी इस मंदिर में सिख धर्म के लोग भी अरदास करने आते हैं. इस धाम पर वर्ष भर में तीन बार उत्सव मनाया जाता है. दोनों नवरात्रों के अलावा, गुरुपूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा तक पूरे एक माह का यहां विशाल मेला लगता है. साथ ही शोभा यात्रा भी निकाली जाती है. यही स्थान आज सहस्त्रबाहु की नगरी सासाराम के नाम से भी जाना जाता है.
मां ताराचंडी मंदिर के पास ही भैरव-चंडीकेश्वर महादेव मंदिर है, जिसे सोनवाग़ढ शिव मंदिर कहा जाता है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. इस मंदिर में सोमवार को काफी भी़ड लगती है. कहा जाता है कि जो भक्त सोमवार को इस मंदिर में दूध और अक्षत च़ढाते हैं, उन पर भगवान शिव की महिमा जल्द ही बरसती है. इस मंदिर में अन्य भगवान को भी प्रतिष्ठापित किया गया है, जिससे भक्तों को अन्य भगवान के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त होता है. मंदिर के आसपास का उपवन और पहा़ड इस मंदिर की सुंदरता में जान फूंक देते हैं. पूरा मंदिर प्रांगण ही शोभायमान है.
मुंडेश्वरी माता का मंदिर (Maa Mundeshwari Temple Kaimur Bhabua):-
यहां से करीब 60 किलोमीटर पश्चिम में मुंडेश्वरी माता का मंदिर है, जो पहा़ड पर स्थित है. मुंड का वध करने के कारण माता का नाम मुंडेश्वरी प़डा. आप यहां आने के बाद इस मंदिर का दर्शन भी कर सकते हैं.
दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर
ऐतिहासिक दृष्टि से जिस मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है, वह बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में पिछले 1900 सालों से लगातार पूजा हो रही है।
कैमूर जिले के भगवानपुर क्षेत्र में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार उदय सेन के शासन काल में इसका निर्माण हुआ। इस मंदिर का शिल्प व प्रतिमाएं उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। इस मंदिर में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है, जो दुर्लभ है। मां मुंडेश्वरी के रूप में दुर्गा का वैष्णवी रूप यहां प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। यह मंदिर अष्टकोणीय है। दक्षिण ओर मुख्य द्वार है।
मुंडेश्वरी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पशु बलिकी की सात्विक परंपरा है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता। एक और अनोखी बात यह है कि यहां पहाड़ी के मलबे के अंदर गणेश और शिव सहित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ दब गईं। खुदाई के दौरान ये मिलती रही हैं। यहाँ खुदाई के क्रम में मंदिरों के समूह भी मिले हैं। वर्ष 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां से मिलीं 97 दुर्लभ प्रतिमाओं को सुरक्षा की दृष्टि से 'पटना संग्रहालय' में रखवा दिया। तीन प्रतिमाएं 'कोलकाता संग्रहालय' में हैं।
माँ ताराचण्डी मंदिर और कथा
यहां से करीब 60 किलोमीटर पश्चिम में मुंडेश्वरी माता का मंदिर है, जो पहा़ड पर स्थित है. मुंड का वध करने के कारण माता का नाम मुंडेश्वरी प़डा. आप यहां आने के बाद इस मंदिर का दर्शन भी कर सकते हैं.
दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर
ऐतिहासिक दृष्टि से जिस मंदिर को दुनिया का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है, वह बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में पिछले 1900 सालों से लगातार पूजा हो रही है।
कैमूर जिले के भगवानपुर क्षेत्र में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार उदय सेन के शासन काल में इसका निर्माण हुआ। इस मंदिर का शिल्प व प्रतिमाएं उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं। इस मंदिर में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है, जो दुर्लभ है। मां मुंडेश्वरी के रूप में दुर्गा का वैष्णवी रूप यहां प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। यह मंदिर अष्टकोणीय है। दक्षिण ओर मुख्य द्वार है।
मुंडेश्वरी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पशु बलिकी की सात्विक परंपरा है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता। एक और अनोखी बात यह है कि यहां पहाड़ी के मलबे के अंदर गणेश और शिव सहित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ दब गईं। खुदाई के दौरान ये मिलती रही हैं। यहाँ खुदाई के क्रम में मंदिरों के समूह भी मिले हैं। वर्ष 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां से मिलीं 97 दुर्लभ प्रतिमाओं को सुरक्षा की दृष्टि से 'पटना संग्रहालय' में रखवा दिया। तीन प्रतिमाएं 'कोलकाता संग्रहालय' में हैं।
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