Wednesday, 5 September 2018

Chhinnamasta Temple Story :- माँ छिन्नमस्तिका के अवतरण की कथा


माँ छिन्नमस्तिका के अवतरण और उनके मुख्य शक्तिपीठ मंदिर की कथा

माँ का वो रूप जिसमे स्वयं माँ ने अपने शीश को काट दिया है और अपने मस्तक को छिन्न करने के कारण यह माँ छिन्न मस्तिका कहलाई यह माँ के दस महाविद्याओ में से एक है | उनकी गर्दन से लहू की तीन धार निकल रही है जो उनके दोनों और सहचरी और स्वयं पान कर रही है | देवी माँ के पैरो में कामदेव और रति पड़े हुए है


यह तांत्रिक पीठ है और माँ कामख्या तारापीठ की तरह तांत्रिको का धाम है | देवी माँ के भक्तो का मुख्य आस्था का केंद्र जहा हर नवरात्रि भक्तो की भारी संख्या माँ के दर्शन पाने आती है | इस मंदिर के अलावा यहा सूर्य , हनुमान शिव आदि भगवानो के दस मंदिर ओर भी है | यह मंदिर बहुत पुराना है और इसकी जानकरी वेदों पुराणों में भी मिलती है | दुर्गा सप्तशती में इस मंदिर की बात की गयी है

आज भी बलि लगती है जानवरों की
इस मंदिर में काली पूजा , मंगलवार और शनिवार को बकरों की बलि चढ़ाई जाती है बलि के बाद सिर पुजारी ले जाते है और धड बलि चढाने वाले को दे दी जाती है | यह चमत्कार है की बलि के दौहरान जो खून निकलता है उस पर मक्खी नही बैठती

माँ छिन्नमस्तिका की उत्पत्ति की कथा
एक बार भगवती माँ अपनी दो सहचरियों के साथ नदी में स्नान कर रही थी | स्नान करते करते उनकी दोनों सहचरियो को भूख लगने लगी | भूख के कारण उनके चेहरे का रंग उड़ चूका था | उन दोनों ने माँ भगवती से उनकी भूख को शांत करने की विनती की  माँ भगवती से उनकी यह हालत देखी नही जा रही थी | आस पास खाने पीने की भी कोई व्यवस्था नही थी | बस माँ का कलेजा भर गया | उन्होंने अपने शीश को तलवार से काट दिया और गर्दन के दोनों और खून की धार बहने लगी | माँ ने इन धारो से उन दोनों की भूख को शांत किया | एक तीसरी धार को माँ ने स्वयं पान किया  अत: माँ अपने भक्तो में अति प्रिय हो गयी | जो दिल से माँ से कुछ मांगते है माँ उनके प्यार के लिए अपना शीश भी काट लेती है और अपना लहू पिला कर भी उनकी विनती पूरी करती है

भारत के झारखण्ड राज्य में रांची से लगभग 75 किमी की दुरी पर भैरवी नदी और दामोदर के संगम पर रामगढ़ जिले में रजरप्पा जगह है , वही है मुख्य शक्तिपीठो में से एक माता छिन्नमस्तिका का मंदिर |

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