"जानिए छतरपुर के मातंगेश्वर मंदिर के बारे में जहाँ नाग मणि पर विराजमान शिवलिंग, दर्शन से पूरी होती है मनोकामनाएं।"
वैसे तो भारत में कई किस्से और दन्त कथाएं प्रचलित हैं पर ज्यादातर कथाएं प्राचीन कहावतों या मतों पर आधारित हैं, ऐसे ही जब बात खजुराहो की होती है तो यहां के मंदिरों को लेकर सैकड़ों मत हैं। खजुराहो में एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर जो सबसे प्राचीन है और जिसकी प्रसिध्दि दूर देशों तक है इस मंदिर को लेकर भी एक लोक कथा प्रचलित है।
कहते हैं कि ये मंदिर केवल आराधना के उद्देश्य से ही नहीं बनवाए गए थे। लेकिन इन मंदिरों में एक मतंगेश्वर मंदिर का निर्माण पूजा-पाठ के मकसद से एक किया गया था, यहां आज भी नियम से पूजा-अर्चना होती है।
यहां शिव की पूजा मतंगेश्वर नाम से की जाती है, यहां के लोगों की मान्यता है कि खजुराहो ही वह स्थान है, जहां भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ संपन्न हुआ था। मतंगेश्वर का एक अर्थ प्रेम का देवता भी होता है
इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है इसके अंदर स्थित करीब ढाई मीटर ऊंचा शिवलिंग, जिसका व्यास एक मीटर से भी ज्यादा है। इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह शिवलिंग जितना जमीन से उपर दिखाई देता है, उससे ज्यादा यह जमीन में दबा है, लोग बताते हैं कि राजा चंद्रदेव को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए एक मरकत मणि मिली थी, जो इस शिवलिंग के नीचे दबी हुई है। मान्यताओं के अनुसार हर साल कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ जाती है। मतंगेश्वर भगवान के शिवलिंग की लंबाई को पर्यटन विभाग के कर्मचारी बकायदा इंची टेप से नापते हैं, जिसके बाद वाकई लंबाई पहले से कुछ ज्यादा मिलती है, खास बात यह है कि शिवलिंग जितना ऊपर की ओर बढ़ता है, ठीक उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है, यह चमत्कार देखने लोगों का हुजूम उमड़ता है।
इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा है कि भगवान शंकर के पास मरकत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों के भाई युधिष्ठिर को दे दी थी। युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि पर पहुंची और उन्होंने राजा हर्षवर्मन को दे दी। मतंग ऋषि की मणि की वजह से ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा, क्योंकि 18 फीट के शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से गाड़ दी गई थी।
खजुराहो में भगवान मतंगेश्वर की बड़ी महिमा है, यहां के घरों में बिना मतंगेश्वर की पूजा के कोई शुभ काम नहीं होता लोकमत के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, यही कारण है कि महादेव का मंदिर सबसे ऊंचा है, बालू पत्थर से बना हुआ यह मंदिर शिल्पकारी की दृष्टि से बहुत ही साधारण है, रचना की दृष्टि से ब्रम्हा मंदिर का ही विशाल रूप है।
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